शनि मंत्र (Shani Mantra)
हिंदू शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार शनि देव के 5 ऐसे शनि मंत्र हैं, जिनका जाप करने से शनि देव हमेशा आप पर मेहरबान रहते हैं। इनमे से किसी भी एक मंत्र का रोजना जाप करें यानी रोजना 108 बार एक मंत्र का जाप करें।
शनि बीज मंत्र-
ऊं प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
or
ॐ शं शनैश्चराय नम:
विनियोग मंत्र- शन्नो देवीति मंत्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:, आपो देवता, शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग
शनि गायत्री मंत्र- औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात
शनि वेद मंत्र- औम प्रां प्रीं प्रौं स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:
जप मंत्र- ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:।
शनि मंत्र जाप करते समय इन बातों का रखें ध्यान: अगर आप इन 5 मंत्रों का जाप करना संभव न हो तो केवल ‘ॐ शनिदेवाय नमः’ मंत्र का जाप करें। ये मंत्र शनि संबंधित सभी समस्याओं का निवारण करता है। केवल इस 1 मंत्र का 1 माला (108 बार) जाप करें।
शनिदेव मंत्रों का जाप कैसे करें- शनिदेव मंत्र का जाप आप सुबह भी कर सकते हैं और सायंकाल में भी कर सकते हैं अगर आप दोनों समय जाप नहीं कर सकते तो एक समय जाप जरूर करें।
प्रत्येक शनिवार को शनि देव के आगे तेल का दिया जलाकर और किसी भी एक मंत्र का जाप करें यानि एक माला जिस में 108 बार आप मंत्रों का उपयोग करेंगे। अगर आप बहुत अच्छा मंत्रों से परिणाम चाहते हैं तो पूरी श्रद्धा के साथ मंत्र का जाप करें शनि देव जरूर आप पर प्रसन्न होंगे।
अगर आप शनि मंदिर नहीं जा सकते तो सबसे अच्छा है घर पर केवल शनिवार को करने की बजाए रोजना सुबह ना धोकर एक स्थान पर बैठक जाएं और इस मंत्र का जाप करें इसे आपको बहुत फ़ायदा मिलेगा।
शनिदेव के कुछ और मंत्र जिनका आप जाप कर सकते हैं-
शनि का वेदोक्त मंत्र-
ॐ शमाग्निभि: करच्छन्न: स्तपंत सूर्य शंवातोवा त्वरपा अपास्निधा:
श्री शनि व्यासविरचित मंत्र-
ॐ नीलांजन समाभासम्। रविपुत्रम यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्डसंभूतम। तम् नमामि शनैश्चरम्।।
शनिचर पुराणोक्त मंत्र-
सूर्यपुत्रो दीर्घेदेही विशालाक्ष: शिवप्रिय: द
मंदचार प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:
शनि स्तोत्र-
नमस्ते कोणसंस्थाचं पिंगलाय नमो एक स्तुते
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमो ए स्तुत
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंदसज्ञाय शनैश्चर नमो ए स्तुते
प्रसाद कुरू देवेश दिनस्य प्रणतस्य च
कोषस्थह्म पिंगलो बभ्रूकृष्णौ रौदोए न्तको यम:
सौरी शनैश्चरो मंद: पिप्लदेन संस्तुत:
एतानि दश नामामी प्रातरुत्थाय ए पठेत्
शनैश्चरकृता पीडा न कदचित् भविष्यति