वेदसार शिव स्तोत्रम् Vedsar Shiv Stav Lyrics

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वेदसार शिव स्तोत्रम् Vedsar Shiv Stav Lyrics
वेदसार शिव स्तोत्रम्

वेदसार शिव स्तोत्रम् Vedsar Shiv Stav Lyrics - वेदसार शिवस्तव स्तोत्र की रचना श्री शंकराचार्य जी द्वारा की गयी है। भगवान् शिव जी को प्रिय महीना श्रावण मास में प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर शिवलिंग पर जल, दूध,दही,घी या पंचामृत स्नान के बाद सफेद फूल और श्रीफल अर्पित करें, और वेदसार शिव स्तोत्रम् का पाठ करे। 

श्रावण मास में किसी भी दिन और किसी भी समय सुबह या शाम इस मंत्र को पढ़ने मात्र से ही जीवन में सभी ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। साथ ही जीवन में आ रही सभी तरह के बाधाएं दूर हो जाती है।

भगवान् शिव की पंचोपचार पूजा में बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़ा, अक्षत, सफेद एवं केसर चंदन तथा मिठाई का भोग लगाएं और मंत्र स्तुति का पाठ कर प्रसाद ग्रहण करें।

।।वेदसार शिव स्तोत्रम् Vedsar Shiv Stav Lyrics।।

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम ।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड ।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम ।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम् ।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य: ।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन ।11।

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः

वेदसार शिवस्तव स्तोत्र अर्थ सहित Shiv Vedsar Stotra Meaning in Hindi

जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्मपहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगा जी खेल रहीं हैं उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हूँ ॥1॥

चन्द्र, सूर्य और अग्नि तीनों जिनके नेत्र हैं उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देव-दुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूति-भूषण, नित्यानन्द स्वरूप, पञ्चमुख भग्वान श्री महादेवजी की मैं स्तुति करता हूँ ॥ 2 ॥

जो कैलाशनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ है॔, बैलपर चढे़ हुऐ हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर पे भस्म लगाये हुऐ है और श्रीपार्वती जी जिनकी अर्धांगिनि हैं, उन पञ्चमुख महादेवजी को मैं भजता हूँ ॥ 3 ॥

हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधारिन ! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत में व्यापक हैं । पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये ॥ 4 ॥

जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जानने योग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभु को मैं भजता हूँ ॥ 5 ॥

जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं, न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं, तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूँ ॥ 6 ॥

जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं उन परम-पावन अद्वैत-स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 7 ॥

हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । वेदवैद्य भगवन ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ॥ 8 ॥

हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रिपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है ॥ 9 ॥

हे शम्भो ! हे महेश्वर ! करूणामय ! हे त्रिशूलिन ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो ॥ 10 ॥

हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे ईश्वर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत तुम्हीसे उत्पन्न होता है, तुम्हीमें स्थित रहता है और तुम्हीमें लय हो जाता है ॥ 11 ॥ 

वेदसार शिवस्तव स्तोत्र के लाभ
वेदसार शिवस्तव स्तोत्र का पाठ करने से शिव साधक की रक्षा स्वयं करते है और उसके सभी कष्टों और दुखो का नाश करते है। और जीवन में सभी सुख प्रदान करते हैं। सोमवार के दिन वेदसार शिवस्तव स्तोत्र का पाठ करने से शिव जी जल्दी प्रसन होते है, वेदसार शिवस्तव में सुख का मंत्र भी बताया है। सोमवार के दिन शिवजी को बेलपत्र जरूर चढ़ाये क्योकि शिवजी जी को बेलपत्र बहुत प्रिय है।

Q.1 वेदसार शिवस्तव स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए ?

वेदसार शिवस्तव स्तोत्र का पाठ सोमवार और श्रावण मास में प्रतिदिन दिन करना चाहिए।

Q  2 वेदसार शिवस्तव स्तोत्र का पाठ की रचना किसने की थी ?

वेदसार शिवस्तव स्तोत्र की रचना श्री शंकराचार्य जी द्वारा की गयी है।

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