माता कालरात्रि - पूजाविधि, कथा, मंत्र, आरती Mata Kalratri

M Prajapat
0
माता कालरात्रि - पूजाविधि, कथा, मंत्र, आरती Mata Kalratri
माता कालरात्रि (Mata Kalratri)

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ।।

माता कालरात्रि

कालरात्रि माता माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति के रूप से जानी जाती हैं। नवरात्रि उत्सव (दुर्गा पूजा) के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है और ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। कालरात्रि मां को रौद्री, धूम्रवर्णा, महायोगीश्वरी, महायोगिनी और शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है।

कालरात्रि माता की छवि

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है और इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

मां कालरात्रि की पावन कथा

चंड मुंड का वध

देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी कालरात्रि ने युद्ध में चंड मुंड के बालों को पकड़ कर खड्ग से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। देवी ने चंड मुंड के सिर को लाकर देवी कौशिकी से कहा मैंने चंड मुंड नाम के इन दो पशुओं का सिर काटकर तुम्हारे चरणों में रख दिए हैं। अब युद्ध में तुम स्वयं शुंभ और निशुंभ का वध करो। देवी ने प्रसन्न होकर कालरात्रि से कहा कि, चंड मुड का वध करने के कारण आज से तुम्हें भक्तगण चामुंडा देवी के नाम से भी पुकारेंगे इसलिए देवी कालरात्रि को चामुंडा देवी भी कहते हैं।

दैत्य रक्तबीज का किया वध

जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

कालरात्रि माता की महिमा (माँ कालरात्रि का महत्व)

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।

देवी कालरात्रि की पूजा विधि और प्रसाद

  • मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह जल्दी स्नान करके साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करे। मान्यता के अनुसार माता को लाल रंग पसंद है, इसलिए मां को लाल रंग का वस्त्र अर्पित करे।
  • मां को स्नान कराने के बाद फूल चढ़ाये।
  • मां को मिठाई, पंच मेवा और 5 प्रकार का फल अर्पित करना चाहिए।
  • माता कालरात्रि को रोली कुमकुम लगाना चाहिए।

नवरात्र के सातवें दिन देवी को खीर का भोग लगना चाहिए। ऋतु फल भी माता को अर्पित कर सकते हैं। संध्या काल में माता को खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए। देवी की पूजा करने से पहले उनका ध्यान करते हुए यह मंत्र बोलें….

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। 
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। 
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।

देवी कालरात्रि का प्रिय पुष्प

माता कालरात्रि की पूजा में लाल गुड़हल के फूलों का विशेष महत्व है। देवी को गुड़हल का फूल बहुत प्रिय है। अगर उपलब्ध हो तो 108 गुड़हल के फूलों की माला बनाकर देवी को भेंट करना चाहिए। इससे देवी कालरात्रि अत्यंत प्रसन्न होती हैं।

माता कालरात्रि - पूजाविधि, कथा, मंत्र, आरती Mata Kalratri
माता कालरात्रि - Mata Kalratri

कालरात्रि माता के मंत्र

कालरात्रि माता की स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।

मंत्र - ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः ।

मंत्र - ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

कालरात्रि माता की प्रार्थना ( महामंत्र )
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

कालरात्रि माता का ध्यान मंत्र

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥

दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥

महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

कालरात्रि माता का स्तोत्र मंत्र

हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

कालरात्रि माता का कवच मंत्र 

ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥

रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥

वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

कालरात्रि माता की आरती

कालरात्रि जय जय महाकाली। 
काल के मुंह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। 
महाचंडी तेरा अवतारा॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा। 
महाकाली है तेरा पसारा॥

खड्ग खप्पर रखने वाली। 
दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा। 
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी। 
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। 
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे ना बीमारी। 
ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवे। 
महाकाली माँ जिसे बचावे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह। 
कालरात्रि माँ तेरी जय॥

माता कालरात्रि की पूजा का लाभ

माना जाता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को नकारात्मक ऊर्जाओं से छुटकारा मिलता है, आंतरिक शक्ति और साहस मिलता है और आध्यात्मिक विकास होता है।

ये भी पढ़े :-

  श्री दुर्गा स्तुति


Tags:-
"navratri 7th day katha in hindi"
"navratri ke satve din ki katha"
"navratri day 7 mantra"
"नवरात्रि का सातवा दिन कालरात्रि मंत्र"
"navratri ka 7 din images"
"7th navratri aarti"
"navratri 7th day aarti"
"maa Kalratri aarti"
"maa Kalratri mantra"
"navratri day 7 aarti"


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!