आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ? Aarti Kya Hai or Kaise Karni Chahiye

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आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ?
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आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ?

आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'आरार्तिक' और 'नीराजन' भी कहा जाता है। आरती में देवी देवताओ का गुणगान किया जाता है। सभी देवी-देवताओं की पूजा के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है। भगवान की पूजा और स्तुति करने का एक विशेष तरीका है, जिसके माध्यम से हम अपनी भक्ति और श्रद्धा को अभिव्यक्त करते है।

स्कन्दपुराण में लिखा है- 
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः ।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ।।

'पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।' भगवान की आरती करने से ही नहीं बल्की आरती देखने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। 

आरती का महत्व

आरती का धार्मिक और सामाजिक महत्व

आरती एक प्रमुख धार्मिक प्रथा है जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह भगवान की पूजा करने का एक विशेष और समर्पित तरीका है जिससे भक्ति और श्रद्धा की भावना सुदृढ़ होती है। सामाजिक रूप से भी, आरती करने से समुदाय में एकता और भाईचारे की भावना विकसित होती है।

आरती के प्रकार

प्रातः और सायं आरती

हिंदू संस्कृति में प्रातः और सायं आरती दो प्रमुख प्रकार की आरती हैं। प्रातः आरती सुबह की अर्चना होती है, जबकि सायं आरती शाम को अर्चना के रूप में की जाती है।

मंदिर आरती

आरती मुख्यता सात प्रकार की होती है जो की मंदिरों में की जाती है - मंगला आरती, पूजा आरती, श्रृंगार आरती, भोग आरती, धूप आरती, संध्या आरती, शयन आरती ।

विष्णु, शिव, देवी आदि के लिए विशेष आरती

भगवान विष्णु, शिव, दुर्गा, गणेश आदि देवी-देवताओं के लिए विशेष आरती होती है जिन्हें अपनी भक्ति एवं पूजा के लिए किया जाता है। इन विशेष आरतियों में भगवान का गुणगान और महिमा किया जाता है, जिसमे सुंदर सुंदर भावपूर्ण पद्य रचनाएं गायी जाती है।

आरती के लिए आवश्यक सामग्री

धूप, दीप, फूल, पुष्पांजलि

आरती करते समय धूप, दीप, फूल और पुष्पांजलि जैसी विशेष सामग्री का उपयोग किया जाता है जो पूजा का अभिषेक करती है।

आरती के लिए मंत्र

सही आरती करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, जो भक्ति और श्रद्धा को और भी मजबूत बनाते हैं।

आरती करने की विधि

पवित्र मन, संपर्पण का भाव

भगवान की आरती खड़े होकर करनी चाहिए। आरती को सिर्फ एक कार्य न समझे अपितु पूरी श्रद्धा और समर्पण भाव से आरती करनी चाहिए। इस प्रकार की गई पूजा और आरती ज्यादा फलदायी होती है।

आरती के समय कुछ मुख्य नियम

आरती के समय कुछ मुख्य नियमों का पालन करना चाहिए जैसे हाथों को घुमाना, आरती करते समय गायन करना, और भगवान की आरती में मन लगाना।

आरती के फायदे

आत्मिक शांति और संतुलन

आरती करने से हमारी आत्मा में शांति और संतुलन बना रहता है। इसके माध्यम से हम अपने आप को ऊंचा और पावन महसूस करते हैं।

परिवार और समुदाय में एकता का संचार

आरती करने से परिवार और समुदाय के बीच एकता और समरसता का माहौल बनता है। सभी लोग मिलकर दिव्यता का अनुभव करते हैं और एक-दूसरे के साथ सहयोग और समर्थन का आत्मानुभव करते हैं।

आरती का धार्मिक महत्व

आरती का करना हमारे धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमें ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा में स्थिरता और विश्वास दिलाता है।

आरती करने के मानसिक और शारीरिक लाभ

आरती करने से मानसिक और शारीरिक दोनों ही लाभ होते हैं। यह हमें ध्यान और एकाग्रता देने में मदद करता है और साथ ही आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रदर्शित करता है।

आरती के बारे में आम भ्रम

आमतौर पर लोग आरती को सिर्फ तामसिक क्रिया मानते हैं, जो केवल पुजाओं का हिस्सा दिखता है। लेकिन आरती का महत्व इससे बहुत अधिक है, जो हमारे आत्मा को ऊँचाई और शांति की अनुभूति दिलाता है।सार्वजनिक रूप से आरती करना अद्वितीय और सामर्थनशील धार्मिक क्रिया है जो हमें भक्ति और आनंद की अनुभूति कराती है। इस विशेष आदर्श रीति के माध्यम से हम अपने मन, शरीर, और आत्मा को पवित्र करते हैं और उन्हें शांति और संगीत की अनुभूति दिलाते हैं। 

FAQs


1. आरती कितनी बार और कब की जानी चाहिए?

Ans: सामान्यता घरों में दो बार आरती होती है - सुबह और शाम।

2. क्या आरती का कोई विशेष समय होता है?

Ans: सुबह और शाम 

3. आरती के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?

Ans: धूप, दीप, फूल, पुष्पांजलि और पूर्ण आस्था 

4. क्या आरती का कोई विशेष महत्व है धार्मिक या सामाजिक संदर्भ में?

Ans: यह हमें ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा में स्थिरता और विश्वास दिलाता है।

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