आरती श्रीमदभगवद गीता की |
आरती श्रीमदभगवद गीता की (Aarti Shrimadbhagavad Geeta Ki)
॥ श्रीमदभगवद गीता आरती ॥
आरती श्री भगवद् गीता की ॥ टेक ॥
वासुदेव श्रीमुख की बानी,
आध्यात्मिक कृतियन की रानी।
विजय- विभूति मुक्ति की दानी,
मुदमङ्गलमय सुपुनीता की ॥ आरती० ॥
महाभारते व्यासविगुम्फित,
समराङ्गण में पार्थ प्रबोधित।
सुर-नर-मुनि सबही सों वन्दित,
पाप-पुञ्ज- कुञ्जर- चीता की ॥ आरती० ॥
मर्म त्याग को सत्य सुझावनि,
दुरित द्वैत दुःख दूरि नसावनि ।
अद्वैतामृत धार बहावनि,
भवदसकन्ध सती सीता की ॥ आरती० ॥
उपनिषदको सार सुहावन,
अनासक्त शुभ काज करावन ।
मन-वच-कर्म सन्त मनभावन,
भक्तिज्ञान जुग जगजीता की ॥ आरती० ॥
रवि-कर भ्रमतमतोम निवारिणी,
विमल- विवेक विश्व विस्तारिणी ।
सुमति-सुधर्म-सुराज्य प्रचारिणि,
'वासुदेव' अनुपम गीता की ॥ आरती० ॥