श्री गुरू स्तोत्रम |
श्री गुरू स्तोत्रम में भगवान शिव जी माता पार्वती को बताते है की गुरु से बड़कर इस संसार में मनुष्य के लिए कुछ भी नही है। बताया गया है कि किसी भी देवी देवता की पूजा पाठ गुरु देव से बड़कर नही है, यानी गुरू से बड़कर कोई भी देवी देवता, पूजा पाठ, कोई भी मंत्र तंत्र नहीं है, गुरु ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम है। यह गुरुस्तोत्र वृहद विज्ञान परमेश्वरतंत्र के अंतर्गत त्रिपुरा-शिव संवाद में आता है।
।। श्री गुरु स्तोत्रम् ।।
।। श्री महादेव्युवाच ।।
गुरुर्मन्त्रस्य देवस्य धर्मस्य तस्य एव वा ।
विशेषस्तु महादेव ! तद् वदस्व दयानिधे ।।
।। श्री महादेव उवाच ।।
जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानम् ।
उत्कल काशीगंगामरणं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।१।।
प्राणं देहं गेहं राज्यं स्वर्गं भोगं योगं मुक्तिम् ।
भार्यामिष्टं पुत्रं मित्रं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।२।।
वानप्रस्थं यतिविधधर्मं पारमहंस्यं भिक्षुकचरितम् ।
साधोः सेवां बहुसुखभुक्तिं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं।।३।।
विष्णो भक्तिं पूजनरक्तिं वैष्णवसेवां मातरि भक्तिम् ।
विष्णोरिव पितृसेवनयोगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।४।।
प्रत्याहारं चेन्द्रिययजनं प्राणायां न्यासविधानम् ।
इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्नगुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।५।।
काली दुर्गा कमला भुवना त्रिपुरा भीमा बगला पूर्णा ।
श्रीमातंगी धूमा तारा न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।६।।
मात्स्यं कौर्मं श्रीवाराहं नरहरिरूपं वामनचरितम् ।
नरनारायण चरितं योगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।७।।
श्रीभृगुदेवं श्रीरघुनाथं श्रीयदुनाथं बौद्धं कल्क्यम् ।
अवतारा दश वेदविधानं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।८।।
गंगा काशी कान्ची द्वारा मायाऽयोध्याऽवन्ती मथुरा ।
यमुना रेवा पुष्करतीर्थ न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।९।।
गोकुलगमनं गोपुररमणं श्रीवृन्दावन-मधुपुर-रटनम् ।
एतत् सर्वं सुन्दरि ! मातर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।१०।।
तुलसीसेवा हरिहरभक्तिः गंगासागर-संगममुक्तिः ।
किमपरमधिकं कृष्णेभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।११।।
एतत् स्तोत्रम् पठति च नित्यं मोक्षज्ञानी सोऽपि च धन्यम् ।
ब्रह्माण्डान्तर्यद्-यद् ध्येयं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।।१२।।
।। वृहदविज्ञान परमेश्वरतंत्रे त्रिपुराशिवसंवादे श्रीगुरोःस्तोत्रम्।।
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