भगवान शिव रचित श्री राम स्तुति |
श्री राम स्तुति - यह स्तुति श्री राम के प्रिय भगवान शिव जी द्वारा प्रभु राम के लंका विजयी कर अयोध्या वापस आने के उपलक्ष्य में गाई गई है। इस स्तुति को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरित्रमानस में लिखा गया है। श्री राम के आगमन पर सभी अयोध्या वासी प्रसन्न और आनन्दित थे। वहा उपस्थित सभी ऋषिगण, गुरु, कुटुम्बी एवं अयोध्या वासियों ने भगवान श्री राम की वंदना की परंतु भगवान शिव द्वारा की गई श्रीराम की वंदना विशेष है। तो पढ़ते और गाते है भगवान श्रीराम की स्तुति -
।। श्रीराम-स्तुति ।।
॥ छन्द: ॥
जय राम रमा रमनं समनं ।
भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥
अवधेस सुरेस रमेस बिभो ।
सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
दससीस बिनासन बीस भुजा ।
कृत दूरी महा महि भूरी रुजा ॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे ।
सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
महि मंडल मंडन चारुतरं ।
धृत सायक चाप निषंग बरं ॥
मद मोह महा ममता रजनी ।
तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
मनजात किरात निपात किए ।
मृग लोग कुभोग सरेन हिए ॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे ।
बिषया बन पावँर भूली परे ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
बहु रोग बियोगन्हि लोग हए ।
भवदंघ्री निरादर के फल ए ॥
भव सिन्धु अगाध परे नर ते ।
पद पंकज प्रेम न जे करते॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं ।
जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं ॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के ।
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
नहीं राग न लोभ न मान मदा ।
तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा ॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा ।
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ ।
पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ॥
सम मानि निरादर आदरही ।
सब संत सुखी बिचरंति मही ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
मुनि मानस पंकज भृंग भजे ।
रघुबीर महा रंधीर अजे ॥
तव नाम जपामि नमामि हरी ।
भव रोग महागद मान अरी ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
गुण सील कृपा परमायतनं ।
प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं ॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं ।
महिपाल बिलोकय दीन जनं ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम॥
॥ दोहा ॥
बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥
बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥
वीडियो: जय राम रमा रमनं समनं
Singer: Lata MangeshkarSinger: Shailendra Bharti