विन्ध्याचलजी की आरती |
विन्ध्याचलजी की आरती Vindhyachal Ji Ki Aarti Lyrics -
।। विन्ध्याचलजी की आरती ।।
आरती कीजै श्री विन्ध्याचल की ॥ टेक ॥
सब अघ खानी तुम वरदानी,
मेटहु ताप सकल भव- भय की।
असुरन को तुम मारि भगायो,
भार उतारयो भूतल की।
आरती कीजै श्री विन्ध्याचल की।।
रणचण्डी बन दैत्य संहारयो,
कष्ट निवारयो सन्तन की।
भृकुटि कराल काल डर लागै,
आदिशक्ति तुम युग-युग की।
आरती कीजै श्री विन्ध्याचल की।
भाल विशाल तिलक ता ऊपर,
जगमग जोति जगै कुण्डल की।
खड्ग त्रिशूल हाथ तव सोहै,
गले बीच माला है मोतिन की ।
आरती कीजै श्री विन्ध्याचल की ॥
जो जन ध्यावै आरति गावै,
शरण गहे तव चरणन की ।
तापर कृपा करहु तुम नितही,
घर में मोद बढ़े जन-धन की।
आरती कीजै श्री विन्ध्याचल की ॥
दोहा
विन्ध्यवासिनी आरती, पढ़ें-सुने जो कोय ।
विनय है शिवदत्त मिश्रकी, सुख-सम्पत्ति सब होय ।।