श्री जीण माता चालीसा (Shree Jeen Mata Chalisa)

Ananya
0
श्री जीण माता चालीसा (Shree Jeen Mata Chalisa)
श्री जीण माता चालीसा (Shree Jeen Mata Chalisa)

श्री जीण माता चालीसा (Shree Jeen Mata Chalisa)

।। दोहा ।।
श्री गुरु पद सुमरण करी, गोंरी नंदन ध्याय ।
वरनों माता जीण यश, चरणों शीश नवाय ।।
झांकी की अद्भुत छवि, शोभा कही न जय ।
जो नित सुमरे माय को, कष्ट दूर हो जाय ।।

।। चोपाई ।।
जय जय जय श्री जीण भवानी । दुष्ट दलन सनतन मन मानी ।।
कैसी अनुपम छवि महतारी । लख निशिदिन जाऊ बलहारी ।।
राजपूत घर जनम तुम्हारा । जीण नाम माँ का अति प्यारा ।।
हर्षा नाम मातु का भाई । प्यार बहन से है अधिकाई ।।
मनसा पाप भाभी को आया । बहन से ये नहीं छुपे छुपाया ।।
तज के घर चल दीन्ही फ़ौरन । निज भाभी से करके अनबन ।।
नियत नार की हर्षा लख कर । रोकन चला बहन को बढ़ कर ।।
रुक जा रुक जा बहन हमारी । घर चल सुन ले अरज हमारी ।।
अब भेया में घर नहीं जाती । तज दी घर अरु सखा संघाती ।।
इतना कह कर चली भवानी । शुची सुमुखी अरु चतुर सयानी ।।
पर्वत पर चढ़कर हुँकारी । पर्वत खंड हुए अति भारी ।।
भक्तो ने माँ का वर पाया । वही महत एक भवन बनाया।।
रत्न जडित माँ का सिंघासन । करे कौन कवी जिसका वर्णन।।
मस्तक बिंदिया दम दम दमके। कानन कुंडल चम् चम् चमके।।
गल में मॉल सोहे मोतियन की। नक् में बेसर है सुवरण की।।
हिंगलाज की रहने वाली। कलकत्ते में तुम ही काली ।।
नगर कोट की तुम ही ज्वाला। मात चण्डिका तुम हो बाला।।
वैष्णवी माँ मनसा तू ही । अन्नपुर्णा जगदम्बा तू ही।।
दुष्टो के घर घालक तुम ही । भक्तो की प्रतिपालक तुम ही।।
महिषासुर की मर्दन हारी। शुम्भ -निशुम्भ की गर्दन तारी।।
चंड मुंड की तू संहारी । रक्त बीज मारे महतारी।।
मुग़ल बादशाह बल नहीं जाना । मंदिर तोड्न को मन माना ।।
पर्वत पर चढ़ कर तू आई। कहे पुजारी सुन मेरी माई।।
इसको माँ अभिमान है भारी। ये नहीं जाने शक्ति तुम्हारी।।
माँ ने भवर विलक्षण छोड़े। भागे हाथी भागे घोड़े।।
हार गया माँ से अभिमानी । गिर चरणों में कीर्ति बखानी।।
गुनाह बख्श मेरी खता बख्श दे । दया दिखा मेरे प्राण बख्श दे।।
तेल सवा मन तुरंत चढाया । दीप जला तम नाश कराया।।
माँ की शक्ति अपरम्पारा । वो समझे सो माँ का प्यारा।।
शुद्ध हदय से माँ का पूजन । करे उसे माँ देती दर्शन।।
दुःख दरिद्र को पल में टारी। सुख सम्पति भर दे महतारी||
जो मनसा ले तोंकू जाये । खाली लोट कभी न आये ।।
बाँझ दुखी और बूढ़ा बाला। सब पर कृपा करे माँ ज्वाला।।
पीकर सूरा रहे मतवाली। हर जन की करती रखवाली।।
सूरा प्रेम से करता अर्पण । उसको माँ करती आलिंगन।।
चेत्र अश्विन कितना प्यारा। पर्व पड़े माँ का अति भरा।।
दूर दूर से यात्री आवे । मनवांछित फल माँ से पावे।।
जात जडूला कर गठ जोड़ा। माँ के भवन से रिश्ता जोड़ा ।।
करे कढाई भोग लगावे । माँ चरणों में शीश शुकावे ।।
जीण भवानी सिंह वाहिनी । सभी समय माँ रहो दाहिनी ।।
नित चालीसा जो पढ़े, दुःख दरिद्र मिट जाय ।
भ्रष्ट हुए प्राणी भले, सुधर सुपथ चल आय ।।
ग्राम जीण सीकर जिला, मंदिर बना विशाल ।
भवरा की रानी तूँ ही, जीण भवानी काल ।।
काजल शिखर विराजती, ज्योति जलत दिन रात ।
भय भंजन करती सदा, जीण भवानी मात ।।

।। दोहा ।।
जय दुर्गा जय अम्बिका, जग जननी गिरिराय ।
दया करो हे जगदम्बे, विनय शीश नवाय ।।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!