॥ श्री तारा देवी स्तुति ॥
शव के हृदय पर
बायें पैर को आगे
दायें पैर को पीछे
वीरासन मुद्रा में
करती भयानक अट्टहास
भव सागर पार करानेवाली
माँ तारा
जय जय माँ तारा
स्वयं भयंकरी, चतुर्भुजी, त्रिनयना
हाथों में कटार, कपाल, कमल और तलवार
उच्च महाशक्ति, महाविद्या
हुंकार बीज उत्पकन्न कुबेर स्वरूपा
विशाल स्वरूपा ,नील शरीरा
सर्प जटा, बाघम्बरा
भाल पर चंद्रमा
दुश्मनों को दंडित करने वाली
साधक को सब कुछ देने वाली
करते हेँ हम उन्हें प्रणाम
निशि दिन लें तारा का नाम