श्री ब्राह्मणी माता जी चालीसा (Shree Brahmaani Mata Ji Chalisha)

M Prajapat
0
श्री ब्राह्मणी माता जी चालीसा (Shree Brahmaani Mata Ji Chalisha)
श्री ब्राह्मणी माता जी चालीसा

श्री ब्राह्मणी माता जी चालीसा (Shree Brahmaani Mata Ji Chalisha)

दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को, जिसने दिया शरीर ।
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर ॥

चौपाई
जय जय जग मात ब्रह्माणी ।
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
वीणा पुस्तक कर में सोहे ।
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
हँस वाहिनी जय जग माता ।
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
खीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
चतुर्दश रतनों में मानी ।
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
चार वेद षट शास्त्र कि गाथा ।
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥ ७ ॥
आद अन्त अवतार भवानी ।
पार करो मां माहे जन जानी ॥ ८ ॥
जब−जब पाप बढे अति भारे ।
माता सस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
अद्य विनाशिनी तू जगदम्बा ।
धर्म हेतु ना करी विलम्भा ॥ १० ॥
नमो नमो चण्डी महारानी ।
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
तेरी लीला अजब निराली ।
स्याह करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
चिन्त पुरणी चिन्ता हरणी ।
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
अन्न पूरणी हो अन्न की दाता ।
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
सर्व व्यापिनी अशख्या रूपा ।
तो कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
योग निन्दा योग माया ।
दीन जान, माँ करियो दाया ॥ १६ ॥
पवन पुत्र की करी सहाई ।
लंक जार अनल शित लाई ॥ १७ ॥
कोप किया दश कन्ध पे भारी ।
कुटम्ब सहारा सेना भारी ॥ १८ ॥
तुही मात विधी हरि हर देवा ।
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
देव दानव का हुवा सम्वादा ।
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
श्री नारायण अंग समाई ।
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।
सुधा देवों को दीना माई ॥ २२ ॥
चतुराई कर के महा माई ।
असुरों को तूं दिया मिटाई ॥ २३ ॥
नौखण्ङ मांही नेजा फरके ।
भय मानत है दुष्टि डर के ॥ २४ ॥
तेरह सो पेंसठ की साला ।
आसू मांसा पख उज्याला ॥ २५ ॥
रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
नगर कोट से किया पयाना ।
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
चौसठ योगिन बावन बीरा ।
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
बैठ भवन में न्याव चुकाणी ।
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
सांझ सवेरे बजे नगारा ।
सीस नवाते शिष्य प्यारा ॥ ३० ॥
मढ़ के बीच बैठी मतवाली ।
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
उतरी मढ बैठी महा काली ।
पास खडी साठी के वाली ॥ ३२ ॥
लाल ध्वजा तेरी सीखर फरके ।
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
चेत आसू में भरता मेला ।
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
कोई संग में कोई अकेला ।
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
कंचन कलश शोभा दे भारी ।
पास पताका चमके प्यारी ॥ ३६ ॥
भाग्य साली पाते दर्शन ।
सीस झुका कर होते प्रसन ॥ ३७ ॥
तीन लोक की करता भरता ।
नाम लिया स्यू कारज सरता ॥ ३८ ॥
मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।
भुल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
मन्द मति दास चरण का चेहरा ।
तुझ बिन कौन हरे दुख मेरा ॥ ४० ॥

दोहा
आठों पहर तन आलस रहे, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी, भोला बालक जान ॥

श्री ब्रह्माणी माता चालीसा | Jyoti Gourisaria | Shree Brahmaani Mata Chalisha | Mata Bhajan


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!