श्री बगलामुखी चालीसा (Shri Baglamukhi Chalisa Lyrics)

M Prajapat
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श्री बगलामुखी चालीसा (Shri Baglamukhi Chalisa Lyrics)

दोहा
सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥

चौपाई
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥१॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥२॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । 
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥३॥
पीतवसन तन पर तव राजै । 
हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥४॥

तीन नयन गल चम्पक माला । 
अमित तेज प्रकटत है भाला ॥५॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै । 
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥६॥

आसन पीतवर्ण महारानी । 
भक्तन की तुम हो वरदानी ॥७॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन । 
सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥८॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । 
वेद पुराण संत अस भाखै ॥९॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । 
जाके किये होत दुख-नाशा ॥१०॥

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । 
पीतवसन देवी पहिरावै ॥११॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । 
अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥१२॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । 
सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥१३॥
धूप दीप कर्पूर की बाती । 
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥१४॥

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । 
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥१५॥
मातु भगति तब सब सुख खानी । 
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥१६॥

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । 
तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥१७॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । 
अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥१८॥

पूजनांत में हवन करावै । 
सा नर मनवांछित फल पावै ॥१९॥
सर्षप होम करै जो कोई । 
ताके वश सचराचर होई ॥२०॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । 
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥२१॥

दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । 
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥२२॥
फूल अशोक हवन जो करई । 
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥२३॥

फल सेमर का होम करीजै । 
निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥२४॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई । 
तेहि के वश में राजा होई ॥२५॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै । 
ताको सकल बंध कट जावै ॥२६॥

बीलाक्षर का पाठ जो करहीं । 
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥२७॥
एक मास निशि जो कर जापा । 
तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥२८॥

घर की शुद्ध भूमि जहं होई । 
साध्का जाप करै तहं सोई ॥२९॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै । 
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥३०॥

अथवा तीर नदी के जाई । 
साधक जाप करै मन लाई ॥३१॥
दस सहस्र जप करै जो कोई । 
सक काज तेहि कर सिधि होई ॥३२॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा । 
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥३३॥
जो तव नाम जपै मन लाई । 
अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥३४॥

सप्तरात्रि जो पापहिं नामा । 
वाको पूरन हो सब कामा ॥३५॥
नव दिन जाप करे जो कोई । 
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥३६॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी । 
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥३७॥
प्रातः सायं अरु मध्याना । 
धरे ध्यान होवैकल्याना ॥३८॥

कहं लगि महिमा कहौं तिहारी । 
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥३९॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा । 
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥४०॥

दोहा
सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम ॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥


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