श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र (Shree Krishna Keelak Stotra)

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श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र (Shree Krishna Keelak Stotra)
श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र

श्री कृष्ण कीलक स्तोत्र (Shree Krishna Keelak Stotra)

ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।

क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।

विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो ।

ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन ।।

भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर ।

हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम ।।

जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।

कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम् ।।

शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय ।

देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम् ।।

वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक ।

ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम् ।।

निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः ।

इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम् ।

यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत् ।

सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे ।।

शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः ।

दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः ।।

ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा ।।

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