Maa Siddhidatri Ki Vart Katha: मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार, एक दिन भगवान शिव जी माँ भवानी की गौर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से माता भवानी यानि माता का स्वरुप माँ सिद्धिदात्री प्रसन्न हो गई और उन्होंने भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान प्रदान दिया। इस वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके बाद से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर का नाम प्राप्त हुआ। शिवजी का यह रूप संपूर्ण ब्रह्माण्ड में पूजनीय है।
"नवमं सिद्धिदात्री च" माँ दुर्गा का नवम स्वरुप माँ सिद्धिदात्री है, यह स्वरुप सभी प्रकार की सिद्धिया प्रदान करने वाली देवी है, इस दिन शास्त्रोक्त विघान के साथ माँ सिद्धिदात्री की पूजा करनेवाले साघक को सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त हो जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, किंवदंती कहती है कि भगवान शिव ने आशीर्वाद के रूप में सभी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए देवी महाशक्ति माँ भवानी की पूजा की थी । देवी सिद्धिदात्री की कृतज्ञता से, भगवान शिव जी को देवी शक्ति का आधा शरीर प्राप्त होता है, इसलिए भगवान शिव जी को "अर्धनारीश्वर" भी कहा जाता है। यानि आधा नर और आधा नारी ।
जब धरती पर विभिन्न प्रकार के राक्षसों का जन्म होने लगा था। ऋषि मुनियों तथा सज्जन लोगों का निवाश करना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच जब पृथ्वी पर महिषासुर नामक दैत्य के अत्याचारों की अति हो गई थी, तब उस दानव के अंत हेतु सभी देवतागण भगवान शिव तथा विष्णु जी से सहायता लेने पहुंचे। उस दानव के अंत के लिए सभी देवताओं ने मिलकर जो तेज उत्पन्न किया, उसी तेज के फल स्वरुप माता सिद्धिदात्री उत्पन्न हुई।
मां सिद्धिदात्री आठ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली मां भवानी का स्वरुप है जिन्होंने अपनी आठ सिद्धियाँ श्री हनुमान और भगवान शिव जी को प्रदान की थी। शिवजी और हनुमान जी भी आठों सिद्धि को प्रदान करने वाले देवता है।
।।जय माता सिद्धिदात्री।।