तारा देवी - दस महाविद्या (Tara Devi -Das Mahavidya)
तारा देवी: 'तारा' का अर्थ होता है पार लगाने वाली, मां पार्वती के इस स्वरूप को करुणा और मुक्ति की देवी माना जाता है। हिन्दू धर्म में तारा देवी दस महाविद्याओं में से द्वितीय महाविद्या हैं। तारा देवी तांत्रिको की देवी कहलाती है। तारा देवी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर और शमशान तारापीठ भारत के पश्चिम बंगाल में स्थित है, तथा शिमला में भी इनका प्रसिद्ध मंदिर है। इनके तीन सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप हैं- एकजता, उग्रतारा और नीलसरस्वती।
भारत के पश्चिम बंगाल और आसाम में नवरात्रि के समय इनकी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है। देवी की सभी भक्त इस समय बड़ी श्रद्धा भाव से पूजा करते है। तंत्र साधकों के अलावा सामान्य मनुष्य भी इनकी पूजा पाठ कर जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है।
इनके जीवन साथी तारकेश्वर जी को माना जाता है। इनके अस्त्र खड्ग और कटार है। तारा देवी का संबंध मां दुर्गा यानी मां पार्वती, और महाविद्या से है। तारा देवी अपने भक्तों को कठिन से कठिन (उग्र) खतरों से रक्षा करती हैं और इसलिए उन्हें उग्रतारा के नाम से भी जाना जाता है।
दश महाविद्या देवी काली और तारा दोनो ही दिखने में एक जैसी हैं। लेकिन देवी काली को काले रंग में वर्णित किया गया है, तथा देवी तारा को नीले रंग में वर्णित किया गया है। दोनों देवियों को ही कम से कम कपड़े पहने हुए तथा उग्र रूप में चित्रण किया गया हैं। इनको सभी तरह की विपदाओं को नाश करने वाली देवी माना जाता है। तंत्र साधना में सिद्धियां प्राप्त करने के लिए इनकी विशेष पूजा का विधान है।
तारा देवी: बीज मंत्र और लाभ
- ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्
- ॐ ऐं हृं स्त्रीं तारायै हुं फट स्वाहा
- ऐं ॐ ह्रीं क्रीं हूं फट्
तारा देवी: गायत्री मंत्र
- ॐ तारायै विद्महे महोग्रायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
उपरोक्त शक्तिशाली बीज मंत्र का जाप देवी तारा का आशीर्वाद और उनकी कृपा पाने के लिए साधकों द्वारा जपा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन बीज मंत्रो का जाप करने से देवी तारा के साथ आध्यात्मिक संबंध भी बनाता है, जिससे भक्त को उनकी उपस्थिति, प्रेम और दिव्य कृपा का अनुभव होता है। सच्चे मन से की गई पूजा पाठ का सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है।
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