गुरु पूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा) |
गुरु पूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा):
गुरु पूर्णिमा, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो गुरु और शिष्य के बीच अटूट बंधन का महत्व दर्शाता है। यह पर्व गुरुवार को पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और गुरुओं को आदर और सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है। इस लेख में, हम गुरु पूर्णिमा के महत्त्व और इसकी परम्परा के बारे में जानेंगे। आषाढ़ के मास (जून-जुलाई) में आने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा) कहते है। प्राचीन समय में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग गुरुकुलो में जाया करते थे। शिष्य इस दिन गुरु को प्रसन्न करने के लिए गुरुदेव का पूजन करते और उनको दक्षिणा देते थे।
गुरु पूर्णिमा: महत्व और महत्वता
गुरु पूर्णिमा का अर्थ
गुरु पूर्णिमा एक हिन्दू त्योहार है जो गुरु की महत्वता और आदर्श को समर्पित करता है। शास्त्रों के अनुसार गुरु शब्द का अर्थ - शास्त्रों में 'गु' का अर्थ होता है - अंधकार या मूल अज्ञान और 'रु' का का अर्थ होता है - दूर करने वाला । इसलिए जो हमारे जीवन में अंधकार रूपी अज्ञानता को दूर कर प्रकाश रूपी ज्ञानता को लेकर आता है उसे हम गुरु कहते है।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
गुरु पूर्णिमा का उत्सव गुरु शिष्य परंपरा को सम्मानित करने और शिष्य को गुरु के प्रति आदर और श्रद्धा दिखाने का मौका प्रदान करता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार, गुरु पूर्णिमा का ये त्यौहार बुद्ध के सम्मान में उनके शिष्य बौद्धों द्वारा मनाया जाता है।
योगिक परंपरा में, इस दिन को इसलिए मनाया जाता है क्युकी इस दिन भगवान शिव पहले गुरु बने और उन्होंने सात लोगो को योगिक व अन्य सभी ज्ञान प्रदान किया था। ये ही सात लोग बाद में सप्तऋषि के नाम से जाने गए ।
प्राचीन कथा के अनुसार -
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और परंपरा
वेदों में गुरु पूर्णिमा का उल्लेख
गुरु पूर्णिमा का प्राचीन समय में वैदिक साहित्य में उल्लेख है और गुरु के महत्व को गुणात्मक रूप से वर्णित किया गया है। वेदों के अनुसार गुरु के बिना जीवन एक अंधकार रूपी रास्ता है, जिसको केवल गुरु के द्वारा ही प्रकाशित किया जा सकता है।
एक प्राचीन कथा के अनुसार एक बार नारद जी विष्णु जी मिलने गए और जब नारद जी विष्णु जी मिलकर वापस लौटे तो भगवान ने उस जगह को गाय के गोबर से साफ कराया। जब नारद जी को इसका पता चला तो उन्होंने भगवान से पूछा की प्रभु ऐसा आपने क्यूं किया तब विष्णु जी ने कहा कि हे नारद जिसका कोई गुरु नहीं होता है उसका जीवन व्यर्थ है, बिना गुरु के जिस जगह पर बैठते है वह जगह दूषित हो जाती है। तब नारद जी कहते है हे प्रभु मैं समझ गया कि गुरु का जीवन में कितना महत्व है। और इतना कहकर नारद जी गुरु बनाने निकल पड़े।
परंपरागत रूप से गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा का महत्व हमारी परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और गुरु शिष्य सम्बंध की महत्वता को पुनरावलोकन करता है। इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। जो की संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे। उन्हे वेद व्यास जी के नाम से भी जाना जाता है, और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था और वे संत कबीरदास जी के शिष्य थे।
गुरु की भूमिका और महत्व
गुरु का मार्गदर्शन और संदेश
गुरु हमें जीवन में सही मार्ग दिखाने के साथ ही आत्मा के विकास और सच्चे ज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। एक गुरु का मार्गदर्शन और संदेश जीवन भर के लिए बदलाव ला सकता है। वे ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, दया और सहनशीलता जैसे आवश्यक मूल्यों और आचरणों को सिखा सकते हैं। गुरु न केवल अज्ञानता को हटाने में मदद करते हैं बल्कि हमें आत्मज्ञान तक पहुंचने में भी मदद करते हैं। वे हमें आत्म-अन्वेषण और आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाकर आंतरिक शक्ति और सच्ची खुशी जगाने में सक्षम बनाते हैं। गुरु हमें उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद करके हमारे उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में हमारी सहायता करते हैं। गुरु का संदेश किसी के जीवन को सशक्त और सफल बना सकता है, ज्ञान का ऐसा खजाना जो कभी खत्म नहीं होता। इसलिए, एक गुरु के उपदेशों को समझने और उन पर अमल करने से व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने में मदद मिलती है।
गुरु का सम्मान और आदर्श
गुरु का सम्मान करना और उनके आदर्शों का पालन करना हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और हमें सच्चे सुख और समृद्धि की दिशा में ले जाता है।
गुरु पूर्णिमा मनाने के विभिन्न तरीके
विभिन्न सामाजिक और धार्मिक परंपराएं
गुरु पूर्णिमा को विभिन्न सामाजिक और धार्मिक परंपराओं में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, जिससे गुरु शिष्य सम्बंध की महत्वता और गुरु का सम्मान दर्शाया जाता है। इस दिन गुरुदेव के नाम से सत्संग कीर्तन भजन करने की परम्परा भी है। जिसमे गुरु वंदना और गुरु भजन गायें जाते है।
- श्रीगुरु - वंदना
- गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिंद
- सतगुरु माने प्रेम प्यालो पायो
- आवणों पडैला सतगुरु
- जब से गुरु दर्श मिला
गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाने के तरीके
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शिष्य गुरु के चरणों में श्रद्धापूर्वक धन्यवाद अर्पित करते हैं और गुरु के सम्मान में विभिन्न पार्वर्थ कार्यक्रमों को आयोजित करते हैं।
गुरु शिष्य संबंध: एक अमूल्य बंधन
गुरु शिष्य का संबंध कैसे बनता है
गुरु शिष्य संबंध एक अनूठा बंधन है जो ज्ञान और समर्पण के माध्यम से प्राप्त होता है। गुरु शिष्य का संबंध जीवन की एक महत्वपूर्ण यात्रा है जिसमें मार्गदर्शक गुरु शिष्य को अनजाने से ज्ञान की ओर आग्रह करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा एक सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है जिसमें गुरुओं का सम्मान किया जाता है। यह उपलब्धि का उत्सव होता है जब गुरु के ज्ञान और मार्गदर्शन की महिमा को स्वीकार किया जाता है। और अज्ञानता से दूर रहने के लिए सदेव गुरु मार्ग का अनुसरण करें।
गुरु के महत्वपूर्ण गुण
गुरु का महत्व उसके ज्ञान, उपकारी भावना, और ध्यान में निहित है। एक अच्छा गुरु विद्यार्थी की जरूरतों को समझता है और उसे उन्हें समझाने का सही तरीका सिखाता है। इस दुनिया में सभी रिश्ते किसी न किसी लालच से बंधे है परन्तु एक गुरु का रिश्ता ही ऐसा है जो बिना किसी लालच के हमे प्यार और हमारा मार्ग दर्शन करता है।
गुरु पूर्णिमा मनाने का तरीका
गुरु पूर्णिमा का त्योहार गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक शुभ और प्रशंसनीय अवसर है। इस दिन शिष्य गुरु के चरणों में श्रद्धा और समर्पण दिखाते हैं और गुरु के आशीर्वाद की मांग करते हैं। इस दिन समय निकाल कर अपने गुरुदेव से जरूर मिले। गुरु के चरणों में अपने आप को बिना किसी लालसा के समर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करे।
यदि आप अपने गुरुदेव से नहीं मिल सकते है, उनसे काफी दूर है तो क्या करे?
इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है जो की मुझे मेरे गुरुजी ने बताया है। इस दिन अपने घर के पूजा स्थल पर एक ॐ का चित्र लगाकर रखे और उसे ही गुरु मानकर तिलक करे पुष्प चढ़ाएं और गुरुदेव का स्मरण करें। गुरु द्वारा दिए गए गुरु मंत्र की एक माला फेरे। गुरुदेव की वंदना, स्तुति और आरती करे।
इस विशेष दिन पर वस्त्र, अन्न का दान जरूर करे, जरूरतमंदों को वस्त्र दे भोजन कराए और पशुओं को जरूर रोटी दे। ये सब श्रद्धा भाव से करने पर गुरुदेव जरूर प्रसन्न होते है और आशीर्वाद प्रदान करते है। गुरुजी के आशीर्वाद मात्र से जीवन की सभी बाधा दूर हों जाति है।
गुरुदेव के रूप में पूजे जाने वाले महान संत और विद्वान:
- वेद व्यास जी
- श्री गोरखनाथ जी
- संत तुलसीदास जी
- संत कबीर दास जी
- गौतम बुद्ध
- महावीर जी
- गुरु नानक जी
गुरु पूर्णिमा सरल शब्दों में:
गुरु पूर्णिमा के उत्सव से हमें गुरु-शिष्य के संबंध के महत्व को समझने का मौका मिलता है और हमें आदर, सम्मान और आशीर्वाद की महत्वता का अनुभव होता है। इस अनमोल संबंध को संरक्षित रखना हमारे जीवन में सफलता और सुख की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गुरु पूर्णिमा, जिसे व्यासपूर्णिमा या शिक्षक दिवस के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार गुरुओं और शिक्षकों के सम्मान में समर्पित है, जो हमें ज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिक विकास के पथ पर ले गए हैं। इस दिन भक्त अपने गुरुओं से आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए उनके चरणों में फूल, फल और अन्य वस्तुओं को चढ़ाते हैं, जबकि गरीब और जरूरतमंदों को दान करते हैं। यह समय आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण करने, हमारे जीवन में हमारे गुरुओं और शिक्षकों के अमूल्य योगदान के प्रति आभार व्यक्त करने और अधिक ज्ञान और समझ प्राप्त करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करने का भी है।